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Channel: पोस्टमाॅर्टम रिपोर्ट – NavBharat Times Blog
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जनाब राहत इंदौरी साहब

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आप पर मेरा सलाम। ये ख़त मैं उस वक़्त लिख रहा हूं जब आपके मरने की ख़बर चारों तरफ़ फैल चुकी है। ख़बर है कि कोरोना के दौरान दिल के दौरे ने आपकी जान ले ली। कमबख़्त दिल भी क्या चीज़ है जो मचलता हुआ ही अच्छा लगता है। उसका ठहरना गज़ब ढहा जाता है। ये दिल मानने को राज़ी नहीं कि आप कहीं और अपना मकां तलाशने निकल गए हैं। ये दिल ही तो है जो बार बार कह रहा है कि काश आप उठते और कहते,

अभी गनीमत है सब्र मेरा, अभी लबालब भरा नहीं हूं मैं
वो मुझको मुर्दा समझ रहा है उसे कहो मरा नहीं हूं मैं

मुझे नहीं मालूम आपका बचपन कैसा रहा होगा, या कैसा गुज़रा होगा। मगर सुना है कि आपने शायरी करने से पहले कैनवास पर रंग बिखेरे। उन रंगों में दिल को सुकून हासिल नहीं हुआ तो हर्फों और लफ़्ज़ों को अपना हमसफ़र बना लिया। वो लफ़्ज़, जो आसमान से सितारों को उतार लाए। सियासत को नसीहत दे जाए। नादानों को अक़्ल दिलाए।

rahat indori death news: Renowned Urdu poet Rahat Indori dies ...आपकी पैदाइश आज़ादी के तीन साल बाद 1 जनवरी 1950 को इंदौर में हुई। आज जब सब जन्माष्टमी का जश्न मना रहे थे, तो आप उस वक़्त में ग़म में डुबाकर चल दिए। इस दर्द को कैसे आप से कहूं। आपने ही एक बार कहा था-

अचानक बांसुरी से दर्द की लहरें उठती हैं
गुज़रती है जो राधा पर वो गिरधारी समझता है।

आपके जाने से जो दिल पर गुज़री है। वो क्या और कैसे उस शख़्स को बताएं जो लफ्ज़ों का जादूगर खुद रहा हो। मेरे ज़हन में सवाल आते हैं आपके उस पहले मुशायरे को लेकर जिसमें आप शामिल हुए होंगे। लोगों ने क्या समझा होगा, कैसे आपको सुना होगा।

आपका मुझे एक इंटरव्यू याद आ रहा है, जब आपने अपनी ज़िंदगी के फलसफे को बयान किया था। तब बताया था कि सन 70 के आसपास इंदौर के किसी इलाके में एग्जिबिशन लगी थी। जहां आप मुशायरे में पहली बार स्टेज पर पहुंचे थे। वहां तक पहुंचने के लिए आपने जुगाड़ लगाया। हां आपने जुगाड़ लफ़्ज़ ही कहा था। उस वक़्त के टॉपर शायर खुमार बाराबंकी, कैफ़ भोपाली, बेकल उत्साही, वगैरा वगैरा तमाम लोग थे। तब उन्हें लगा कि ये लड़का कुछ अलग है। शायद वो नहीं जानते होंगे कि जिसे आज वो राहतउल्ला कुरैशी समझकर सुन रहे हैं, एक रोज़ वो दुनियाभर में डॉक्टर राहत इंदौरी नाम से मशहूर हो जाएगा।

आपने सियासत और मोहब्बत दोनों पर बराबर हक और रवानगी के साथ शेर कहे। आपका ख़ास अंदाज़ में ग़म-ए-जाना यानी प्रेमिका के लिए शेर कहना युवाओं पर इश्क़ की पिचकारी छोड़ता था। आप महफिलों की जान होते थे। आप कहते थे –

फूलों की दुकानें खोलो, खुशबू का व्यापार करो
इश्क़ खता है तो, ये खता एक बार नहीं, सौ बार करो

हमने खता की थी आपसे इश्क़ करने की। मगर आप यूं अचानक चल दिए।लग रहा है उस खता की सजा मिल रही है।आज आप जा रहे हो तो चांद सितारे सब याद आ रहे हैं। याद आ रहा है आपका वो कहना,

रोज़ तारों को नुमाइश में खलल पड़ता है
चांद पागल है अंधेरे में निकल पड़ता है

अब आप निकल पड़े हैं। अकेले। दूसरी दुनिया में अपने अशआर से हलचल मचाने। महफिलें जमाने। दूसरी दुनिया में अपना हक जताने।

कश्ती तेरा नसीब चमकदार कर दिया, इस पार के थपेड़ों ने उस पार कर दिया।
दो गज़ सही ये मेरी मिलकियत तो है, ऐ मौत तूने मुझे जमींदार कर दिया।

सियासत के सामने बड़े बड़े शायरों के क़दम लड़खड़ाए और उन्होंने सियासत की शान में क़सीदे पढ़े, मगर आप ने तो समझो सियासत को ही निशाने पर ले रखा था। इतनी बेबाकी औऱ बेखौफ़ देखकर कह सकता हूं कि आपके शेर सियासत को भूलने नहीं देंगे कि इस हिंदुस्तान में एक शायर इंदौरी भी हुआ है, जो कहता था-

“सभी का ख़ून है शामिल यहां की मिट्टी में,
किसी के बाप का हिंदुस्तान थोड़ी है”

सड़क से लेकर संसद तक आपके शेर गूंजे।

वो चाहता था कि कासा खरीद ले मेरा
मैं उसके ताज की क़ीमत लगा के लौट आया

ग़ज़ल अगर इशारों की कला है तो मैं कहता हूं राहत इंदौरी वो कलाकार बनकर दुनिया में रहा जो अपने अंदाज में झूमकर इस कला को बखूबी अंजाम देता रहा। ये उस शायर को अलविदाई ख़त है जो जीने के सलीक़े सिखाता रहा। ज़िंदगी के मायने बताता रहा। कैसे दुनिया में रहा जाए वो सिखाता रहा।

घर के बाहर ढूंढता रहता हूं दुनिया
घर के अंदर दुनिया-दारी रहती है।

मिरी ख्वाहिश है कि आंगन में न दीवार उठे
मिरे भाई मिरे हिस्से की ज़मीं तू रख ले

आपका उर्दू में किया गया रिसर्च वर्क उर्दू साहित्य की धरोहर रहेगा। सिनेमा के लिए लिखे गए आपके गीत गुनगुनाए जाते रहेंगे। याद आओगे जब कहीं सुनेंगे ये गीत‘तुमसा कोई प्यारा कोई मासूम नहीं है’, ‘दिल को हज़ार बार रोका’, ‘चोरी-चोरी जब नज़रे मिलीं’

अब आप चोरी चोरी जा रहे हो। आपने ट्विटर पर कहा था कि बीमारी को हराने जा रहे हो। मगर सुना है तुम दिल से हार गए हो। जा रहे हो इंदौरी साहब जाओ। अलविदा। याद आओगे।


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